vaibhav laxmi vrat katha Vaibhav Laxmi Vrat ka Udyapan Vaibhav Laxmi Vrat ki Samagri Vaibhav Laxmi Vrat ke Niyam Vaibhav Laxmi Vrat ka Mahatva हम सभी लोग धर्म,आस्था से जुड़े हुए हैं। हर कोई इंसान अपने जीवन में सुख समृद्धि धन,वैभव यश सभी कुछ चाहता है। इसी के लिए सब मेहनत भी करते हैं। कर्म के साथ साथ हम लोगों का ईश्वर पर भी पूर्ण विश्वास है। इसी विश्वास और श्रद्धा से जुड़े एक बहुत ही फलदाई व्रत के बारे में आज बात करते हैं। जिसे वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है।जीवन में पैसों की कमी न हो इसके लिए लोग मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका क्या है ?आप लक्ष्मी मां को वैभव लक्ष्मी व्रत के द्वारा आसनी से मना सकते हैं।मान्यता है कि शुक्रवार के दिन विधि-विधान से माता लक्ष्मी की पूजा करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका साथ हमेशा हमारे जीवन में बना रहता है।
वैभव लक्ष्मी व्रत कब से शुरू करना चाहिए। –Vaibhav Laxmi Vrat Katha.
सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत ज्यादा शुभकारी माना जाता है।इस व्रत को पुरुष व स्त्री दोनों ही कर सकते हैं।वैभव लक्ष्मी का व्रत शुक्रवार के दिन रखा जाता है।शुक्रवार का दिन मुख्य रूप से माता लक्ष्मी को समर्पित किया गया है।मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए शुक्रवार का दिन बहुत उत्तम रहता है।इस दिन मां लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।इसके साथ ही मां दुर्गा और संतोषी मां की पूजा भी शुक्रवार के दिन की जाती है।
शुक्रवार के दिन वैभव लक्ष्मी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत अति शीघ्र फल देने वाला है। इस व्रत को सच्चे मन से करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।यह व्रत किसी भी मास के शुल्क पक्ष के प्रथम शुक्रवार से आरम्भ किया जाता है।इस व्रत का संकल्प लिया जाता है और खत्म होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता है।
वैभव लक्ष्मी मैया का व्रत करने की विधि। –Vaibhav Laxmi Vrat Karne ki Vidhi.
- सबसे पहले शुक्रवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर और स्नान करके देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- यह व्रत 9, 11 और 21 शुक्रवार के लिए रखा जाता है। संकल्प लेने के बाद आपको उतने शुक्रवार पूरी श्रद्धा के साथ मां वैभव लक्ष्मी का व्रत रखना होता है और फिर व्रत के अंतिम शुक्रवार के दिन उद्यापन करना होता है।
- वैभव लक्ष्मी व्रत के दौरान श्री यंत्र की पूजा को भी काफी फलदायक माना गया है। श्री यंत्र को माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के आगे स्थापित करना चाहिए और श्री यंत्र की पूजा करने के बाद ही वैभव लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
- इसके बाद माता की तस्वीर के सामने एक मुट्ठी चावलों का ढेर लगाकर उस पर पानी से भरे एक कलश की स्थापना करें और इस कलश पर एक कटोरी रखकर उसमें किसी सोने या चांदी का आभूषण रख दें। पूजा के दौरान, मां वैभव लक्ष्मी को लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल चंदन, गंधक और पूजा की अन्य सामग्री अर्पित करें। ये सभी चीजें मां को अत्यधिक प्रिय हैं।
- माता को चावल की खीर का भोग लगाएं।अगर आप खीर नहीं बना पाए हैं तो सफेद मिठाई का भोग भी लगा सकते हैं।
- व्रत पूरा होने के बाद शाम के समय अन्न ग्रहण करना चाहिए।
- शाम को पूजा करने के बाद जो चावल आपने पूजा में रखे थे उनको पक्षियों को खाने के लिए दे दें। वहीं कलश में भरे जल को घर के हर कोने में छिड़क दें, इससे घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
वैभव लक्ष्मी की पूजा शाम के समय की जाती है। शाम के पूजा करने के लिए पूर्व दिशा की तरफ मुंह कर बैठ जाएं।
वैभव लक्ष्मी मां की पूजा के समय इन मंत्रों का अवश्य उच्चारण करें। — Vaibhav Laxmi Vrat Mantra. –Vaibhav Laxmi Vrat Katha. — mahalaxmi katha aarti
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
यत्राभ्याग वदानमान चरणं प्रक्षालनं भोजनं
सत्सेवां पितृ देवा अर्चनम् विधि सत्यं गवां पालनम
धान्यांनामपि सग्रहो न कलहश्चिता तृरूपा प्रिया:
दृष्टां प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन ग्रहे निष्फला:
Vaibhav Laxmi Vrat Katha.
पूजा करने के बाद अपनी मनोकामना को मन में 7 बार जरूर दोहराएं। साथ ही मां लक्ष्मी का ध्यान करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत के महत्त्व पूर्ण नियम। –Vaibhav Laxmi Vrat ke Niyam.
1-इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित 9,11 या 21 शुक्रवार तक करने का नियम है।
2-इस व्रत को कोई भी कर सकता है पर सुहागिन स्त्रियों के लिए इसे अधिक शुभदायी माना गया है।
3-व्रत के दिन मां लक्ष्मी के पूजन से दिन आरंभ करें।
4-व्रत के दिन सुबह उठकर घर की सफाई करें।
5-इस दिन,दिन के समय सोएं नहीं।
6-आलस्य से दूर रहें।
7-इस दिन कथा सुनकर मां लक्ष्मीजी को श्रद्धा सहित प्रणाम करना चाहिए। और प्रसाद बांटकर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए।
8-मन और शरीर को शुद्ध रखें, बुरे विचार न आने दें।
वैभव लक्ष्मी व्रत की सामग्री। –Vaibhav Laxmi Vrat ki Samagri.

मां लक्ष्मी की प्रतिमा, फूल, चंदन, अक्षत, पुष्प माला, पंचामृत, दही, दूध, जल, कुमकुम, मौली, दर्पण, कंघा, हल्दी, कलश, विभूति, कपूर, घंटी, केले, धूप बत्ती, प्रसाद और दीपक।
वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा। –Lakshmi ji ki Kahani = Laxmi ji ki Khani
शीला और उसका पति बहुत ईमानदार थे। वे किसी की भी बुराई नहीं करते थे, और प्रभु भजन में अपना समय व्यतीत करते थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की प्रशंशा करते थे। शीला और उसके पति की जिन्दगी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। देखते ही देखते समय बदल गया। शीला के पति की अच्छी संगति बुरी में बदल गई। अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा और फलस्वरूप उसकी हालात भिखारी जैसी हो गई।
शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत लग गई। इस प्रकार उसने अपना सब कुछ जुए में गंवा दिया। इसी तरह एक वक्त ऐसा भी था कि वह सुशील पत्नी शीला के साथ मजे में रहता था। दोनों प्रभु भजन में वक्त व्यतीत करते थे। लेकिन अब उसके बजाय घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने की बजाय दो वक्त भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियां खानी पड़ती थी।
शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख होता था। किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुःख सहन करती रही। कहा जाता है कि सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आता ही है। इसीलिए दुःख के बाद सुख आयेगा ही। ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी।इस तरह शीला दुःख सहते- सहते प्रभु की भक्ति में समय बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी।
शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा? फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिये ऐसे संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। उसने देखा तो सामने एक मांजी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थी। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आंखों से मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करूणा और प्यार से भरा हुआ था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई।
वैसे शीला इस मांजी को पहचानती भी नहीं थी, फिर भी उनको देखकर शीला के मन में आनन्द छा गया। शीला मांजी को आदर के साथ घर ले आई। शीला के घर में मांजी को बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाते हुए फटी हुई चद्दर पर उनको बिठाया।मांजी ने कहा, शीला!मुझे पहचाना नहीं? शीला ने सकुचा कर कहा मां मैं आपको पहचानती नहीं हूं, फिर भी आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति मिल रही है।
ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी वे आप ही है। मांजी ने कहा कि क्यों मुझे भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन कीर्तन होते है, तब मैं भी वहां आती हूं। वहां हम हर शुक्रवार को मिलते हैं। पति के गलत रास्ते पर चले जाने से शीला बहुत दुःखी हो गई थी, और दुःख की मारी वह लक्ष्मी जी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाने में भी उसे शर्म आती थी। उसने याददास्त पर जोर दिया पर यह मांजी याद नहीं आ रहीं थी।
तभी मांजी ने कहा, ‘तू लक्ष्मीजी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। बहुत दिनों से तू दिखाई नहीं दे रही थी, इसलिये मैने सोचा कि तू आती क्यों नहीं है? कहीं बीमार तो नहीं हो गई है? ऐसा सोचकर मैं मिलने चली आई हूं। मांजी के प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। मांजी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देखकर मांजी शीला के सिर पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।
मांजी ने कहा- बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दुःख आता है, तो दुःख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी और तुझे क्या परेशानी है? तेरे दुःख की बात मुझे बता, बताने से तेरा मन भी हल्का हो जायेगा और तेरे दुःख का कोई उपाय भी मिल जायेगा। मांजी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने मांजी को कहा, मां! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थीं। मेरे पति भी बहुत सुशील थे।
भगवान की कृपा से पैसे की भी कोई परेशानी नहीं होती थी। हम शांति से गृहस्थी चलाते ईश्वर-भक्ति में अपना वक्त व्यतीत करते थे। एकाएक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति को बुरी दोस्ती हो गई। बुरी दोस्ती की वजह से वो शराब, जुआ, और खराब आदतों के शिकार हो गये और उन्होने सब कुछ गँवा दिया और हम रास्ते के भिखारी बन गये। यह सुनकर मांजी ने कहा- कि ‘कर्म की गति न्यारी होती है। हर इन्सान को अपने कर्म इसी जनम में भुगतने पड़ते हैं।
मांजी ने कहा, बेटी तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तेरे सुख के दिन आयेंगे। तू तो मां लक्ष्मीजी की भक्त है। मां लक्ष्मीजी तो प्रेम और करूणा की अवतार हैं। वो अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिये तू धैर्य रख के मां लक्ष्मी का व्रत कर। ऐसा करने से सब कुछ ठीक हो जायेगा। मां लक्ष्मी का व्रत करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा मां लक्ष्मीजी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे बताइए मैं यह व्रत अवश्य करूंगी।
मांजी ने कहा, बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे वरद लक्ष्मी व्रत या वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती हैं। वह सुख- समृद्धि और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर मांजी वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि बताने लगीं। शीला ये सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई न था। वह सोच में पड़ गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल ये समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं मां लक्ष्मीजी ही थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहने और शीला ने मांजी के द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया। उसके बाद आखिरी में प्रसाद बांटा गया। शीला ने सबसे पहले अपने पति को प्रसाद खिलाया, प्रसाद खाते ही उसके पति के स्वभाव में फर्क आ गया। उस दिन उसने शीला को मारा भी नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ। उसके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा और भी बढ़ गई।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से 20 शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत किया। 21वें शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन करके सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी। फिर माताजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी। हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मांगी थी वह व्रत आज पूर्ण हो गया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़कियों को मन मुताबिक पति देना।
जो भी आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत करे उनकी सब विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना। हे मां! आपकी महिमा अपार है। ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया। इस तरह शीला ने विधिपूर्वक और श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति गलत रास्ते पर चला गया था, वह अच्छा आदमी बन गया।और कड़ी मेहनत करके फिर से अपना व्यवसाय करने लगा। मां वैभव लक्ष्मी की कृपा से शीला के घर में धन की बाढ़ आ गई। मां वैभव लक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी वैभव लक्ष्मी का व्रत करने लगीं।
वैभव लक्ष्मी माता के व्रत का महत्व। — Vaibhav Laxmi Vrat ka Mahatva.
- वैभव लक्ष्मी व्रत का बहुत ज्यादा महत्त्व है। यह शीघ्र फल देने वाला फलदाई व्रत है।
- यह व्रत खासतौर पर किसी काम में आ रही बाधा और आर्थिक संकट को दूर करने, साथ ही मार्ग से भटके हुए व्यक्ति को सही रास्ता दिखाने के लिए किया जाता है।
- देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों में से एक वैभव लक्ष्मी, मां का वह स्वरूप है, जिसकी पूजा-अर्चना करने से दरिद्रता मिटती है और घर में वैभव का आगमन होता है।
- घर-परिवार में चल रहे विवाद खत्म हो जाते हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन। –Vaibhav Laxmi Vrat ka Udyapan.

व्रत रखने वाले को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ यह व्रत 9, 11 और 21 शुक्रवार के लिए रखना चाहिए।अंतिम शुक्रवार के दिन इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन के दिन उपवास रखकर मां वैभव लक्ष्मी का पूजन करें और 7 या 9 कन्याओं को खीर-पूड़ी का भोजन कराएं। उनकी आरती करें। उनके पैर छुएं। वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक, दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. अंत में खुद भोजन करें।ऐसा करने से बहुत लाभ होगा।
वैभव लक्ष्मी व्रत से जुड़े कुछ सवाल जवाब। FAQ
Q1-वैभव लक्ष्मी की पूजा किस समय की जाती है? Vaibhav Laxmi Vrat Katha!

A. वैभव लक्ष्मी की पूजा शाम के समय की जाती है।
Q2-वैभव लक्ष्मी का व्रत करने से क्या फल प्राप्त होते हैं?

A. वैभव लक्ष्मी व्रत को करने से जीवन में धन और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।इस व्रत को रखने से घर-परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहती है।
Q3-सुबह उठकर क्या करने से मैया लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं?

A. प्रतिदिन सुबह उठकर अपने घर की साफ-सफाई करने के बाद स्नान करने के बाद शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य रखना चाहिए और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद तुलसी के पौधे में जल चढ़ाना चाहिए।ऐसा करने से आप पर लक्ष्मी मां की कृपा बनी रहती है।
Q4-वैभव लक्ष्मी मैया का व्रत कितने शुक्रवार के लिए रखा जाता है।

A. वैभव लक्ष्मी व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित 9,11 या 21 शुक्रवार तक करने का नियम है।
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