pradosh Vrat katha mahatva in hindi | प्रदोष व्रत से जुड़ी संपूर्ण जानकारी।

Pradosh Vrat Udyapan pradosh Vrat katha Pradosh Vrat Kab Hai Pradosh Vrat Vidhi Pradosh Vrat Puja Samagri जैसा कि हम सभी लोग धर्म से जुड़े हुए हैं। हिंदू धर्म में अनेकों व्रत,त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।हर एक व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है ।हर एक व्रत से जुड़ी कोई ना कोई मान्यता जरूर होती है जिसका हम लोग पालन कर अपने कष्टों को दूर करते हैं। ऐसे ही एक व्रत कि आज बात करने जा रहे हैं जिसे हम प्रदोष व्रत कहते हैं।

हर माह में प्रदोष व्रत दो बार आता है एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शंकर और मां पार्वती की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार एकादशी व्रत को भगवान विष्णु के साथ जोड़ा गया है उसी प्रकार प्रदोष व्रत को भगवान शंकर के साथ जोड़ा गया है।हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है।

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क्यों किया जाता है प्रदोष व्रत। — Pradosh Vrat ka Katha Mahatva.

pradosh Vrat katha
pradosh Vrat katha mahatva

चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया अत:हमें उन शिव भगवान की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था। इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।  प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं।

त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है।शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है।

प्रदोष व्रत कब से शुरू करना चाहिए। — Pradosh Vrat Kab Hai.

Pradosh Vrat Kab Hai
Pradosh Vrat Kab Hai

शास्त्रानुसार प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है। कार्तिक और श्रावण मास प्रदोष व्रत प्रारंभ करने के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं। प्रदोष व्रत का आरंभ विधिवत पूजा पाठ करके एवं संकल्प लेते हुए करना चाहिए।

प्रदोष व्रत की विधि क्या है। — Pradosh Vrat Vidhi

  • शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है।
  • प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
  • सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं।
  • पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
  • शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें।
  • भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं, फिर शिव चालीसा का पाठ करें।
  • भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं।
  • प्रदोष के दिन काले तिलयुक्त कच्चा दूध शिव जी पर चढ़ाएं तथा काले तिल का दान करें, ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति,  तथा धन, यश और कीर्ति मिलेगी।
  • प्रदोष व्रत में दान का बहुत अधिक महत्व है इसलिए पूजा करने के बाद ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

प्रदोष व्रत की पूजा की सामग्री। — Pradosh Vrat Puja Samagri.

1-ताजे पुष्प एवं माला

2-गाय का घी दीया जलाने के लिए

3-गंगाजल

4-धतूरा

5-काले तिल

6-धूप

7-नैवेद्य

8-बिल्वपत्र

9-भांग

10-कपूर

प्रदोष व्रत कथा। — Pradosh Vrat Katha.

Pradosh Vrat Puja Samagri
Pradosh Vrat Katha Pradosh Vrat Puja Samagri

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था।

शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था। इसलिए वह इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया।

कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया।

ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

प्रदोष व्रत का महत्व। — Pradosh Vrat ka Kath ka Mahatva

अलग-अलग वार को आने वाले प्रदोष व्रत का महत्व भी अलग अलग ही होता है। सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग हैं।

रविवार प्रदोष व्रत : -Ravi Pradosh

जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। इस दिन नियम पूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और लंबी आयु प्राप्त होती है। रवि प्रदोष व्रत रखने से सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस दिन भगवान शिव जी की पूजा के साथ साथ सूर्य देव की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

सोमवार प्रदोष व्रत: -Som Pradosh

सोमवार के दिन त्रयोदशी तिथि आने पर इसे सोम प्रदोष कहते हैं। सोमवार के दिन व्रत रखने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखा जाता है साथ ही जिस की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति खराब होती है उसे यह व्रत जरूर रखना चाहिए।

मंगलवार प्रदोष व्रत : -Mangal Pradosh

मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। इस दिन यह व्रत रखने से कर्ज से छुटकारा मिलता है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी सभी परेशानियां दूर होती हैं।

बुधवार प्रदोष व्रत : -Budh Pradosh vrat katha

इस दिन प्रदोष व्रत शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है।वाणी में शुभता आती है। जिन जातकों की कुंडली में बुध गृह के कारण परेशानी है या वाणी दोष इत्यादि कोई विकार परेशान करता है तो उसके लिए बुध प्रदोष व्रत से, बुध की शुभता प्राप्त होती है।

बृहस्पतिवार प्रदोष व्रत : -Guru Pradosh

गुरु प्रदोष व्रत होने से यह व्रत जातक को संतान और सौभाग्य की प्राप्ति कराता है।गुरुवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत विशेष कर पुत्र कामना हेतु विशेष फलदाई होता है।

शुक्रवार प्रदोष व्रत : -Sukra Pradosh

शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत होने पर इसे शुक्र प्रदोष या भृगुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी पुकारा जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन की आर्थिक कठिनाइयां दूर होती हैं। एवं सौभाग्य में वृद्धि भी होती है।

शनि प्रदोष व्रत : -shani Pradosh

शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुंडली में मौजूद शनि दोष या शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैय्या से मिलने वाले कष्ट भी दूर होते हैं।

प्रदोष व्रत में क्या खाया जाता है। — Pradosh Vrat Mein Kya Khana Chahie

प्रदोष व्रत में अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए।जब आप अपना व्रत खोले तो हरे मूंग का सेवन करें क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है।आप दूध का सेवन कर सकते हैं या दूध से बनी चीजें जैसे- दही, श्रीखंड या पनीर खा सकते हैं। आप यह व्रत फलाहार करके भी रख सकते हैं।

प्रदोष व्रत उद्यापन। Pradosh Vrat Udyapan Samagri.

Pradosh Vrat Udyapan
Pradosh Vrat Udyapan
  • प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।
  • प्रदोष व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
  • उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है।पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है
  • ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है।
  • हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है।
  • अंत में सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

प्रदोष व्रत  से जुड़े को सवालों के जवाब। FAQ

Q1.-प्रदोष व्रत की पूजा कितने बजे करनी चाहिए?

A. प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही करनी अति उत्तम मानी जाती है। प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले शुरु होता है और 45 मिनट बाद  तक का होता है।

Q2.-प्रदोष व्रत में कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?

A. प्रदोष व्रत में पंचाक्षरी मंत्र- ओम नमः शिवाय का जाप करना बहुत फलदाई होता है।

Q3.क्या प्रदोष व्रत में नमक का सेवन कर सकते हैं?

A. प्रदोष व्रत फलाहार लेकर भी किया जा सकता है।इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जा सकता है।केवल सेंधा नमक का सेवन आप कर सकते हैं।

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